दुनिया का प्राचीनतम सर्वाधिक वैज्ञानिक युद्ध कला (मार्शल आर्ट) के रूप में मानी जाने वाली कलरिपयट्ट् का विकास केरल में हुआ था। केरल के गौरव के रूप में प्रशंसित यह युद्ध कला दुनिया भर में सम्मानित और प्रशंसित है।
इसमें प्रशिक्षण की शुरुआत पूरे शरीर के तेल मालिश (ऑयल मसास) से की जाती है और ताकि शरीर ढीला और लचीला बने। चाट्टम (कूद), ओट्ट्म (दौड़) और मरिचिल (कलाबाजी) जैसी गतिविधियां भी इस युद्धक कला के अभिन्न अंग हैं। तलवार, कटार, भाला, मुग्दर और धनुष-बाण जैसे हथियारों का इस्तेमाल करना भी सिखाया जाता है।
प्राथमिक लक्ष्य है मन और शरीर के बीच चरम सामंजस्य की स्थापना। कलरिपयट्ट् का दूसरा लक्ष्य है देशी औषधि विद्या में परंगत होना। कलरि धार्मिक आराधना के भी महत्वपूर्ण केंद्र होते हैं। पाठ्यक्रम (कोर्स) पूरा होने के बाद प्रशिक्षु को ऑयल मसाज करना पड़ता है और शरीर का उपयुक्त आकार कायम रखने के लिए अभ्यास करते रहना पड़ता है।