दुनिया भर में मशहूर कथकली की भव्यता ने केरल को खासी प्रसिद्धि दिलाई है। हमें गर्व है कि यह महान नृत्य कला शैली 300 साल से भी अधिक पहले केरल के तटों पर उद्भूत हुई। इसमें भक्ति, नाटकीयता, नृत्य, संगीत, वेशभूषा (कॉस्ट्यूम) और श्रृंगार (मेक-अप) के समन्वय से दर्शकों के लिए एक दैवी अनुभव का सृजन होता है। यह अतीत की कहानियां सुनाती है खासकर भारतीय महाकाव्यों की और अपने प्रदर्शन की बारीकीयों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती है। इसमें होठों का हर कंपन, आंखों की भंगिमाएं या उंगलियों की मदद से बनाई गई मुद्राएं बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। संपूर्ण प्रदर्शन दर्शकों की आंखों को इस अद्भुत जादू से दूर और स्टेज से बाहर हटने नहीं देता।
कथकली का श्रृंगार (मेक-अप)वेशभूषा (कॉस्ट्यूम) भव्य, रंगीन और विविधतापूर्ण होते हैं और चेहरे पर अनेक तरह के रंग लगाए जाते हैं। वेषम या मेक-अप पांच प्रकार के होते हैं - पच्चा, कत्ती, ताडी, करि और मिनुक्क।
कथकली की भव्यता और शान कुछ इसकी सज्जा और श्रृंगार के कारण होती है जिसका एक महत्वपूर्ण अंग है किरीटम (सिर के ऊपर की विशाल सज्जा) और कंचुकम (बड़े आकार का अंगवस्त्र/जैकेट) और एक लंबी लहंगा जिसे कुशन की मोटी गद्दी के ऊपर पहना जाता है। कलाकार अपने प्रदर्शन में पूरी तरह डूब जाते हैं और दर्शक उन गाथाओं में जो इनके जरिए प्रदर्शित होती हैं।
पच्चा वेषम या हरा मेक-अप शालीन नायक प्रस्तुत करता है।
कत्ती (चाकू)कत्ती वेषम खलनायक का चरित्र पेश करता है।
ताडी (दाढ़ी)तीन प्रकार की दाढ़ी या ताडी वेषम होते हैं। हनुमान जैसे अतिमानवीय बानरों के लिए वेल्ला ताडी या सफेद दाढ़ी। चुवन्ना ताडी या लाल दाढ़ी दुष्ट चरित्रों के लिए होती है। करुत्ता ताडी या काली दाढ़ी शिकारी के लिए होती है।
करि (काला)करि वेषम राक्षसियों के लिए प्रयुक्त होता है।
मीनुक्क (सज्जा)“मीनुक्क वेषम” स्त्री पात्रों और संतों के लिए प्रयुक्त होते हैं।
मुद्रामुद्रा एक शैलीगत संकेत भाषा है जिसका उपयोग किसी विचार, परिस्थिति या अवस्था को निरूपित करने में किया जाता है। कथकली कलाकार मुद्रा के जरिए अपनी विचार-अभिव्यंजना को व्यक्त करता है। इसके लिए कलाकार एक सुव्यवस्थित संकेत भाषा का उपयोग करता है जो हाथ की मुद्राओं की व्याख्या करने वाले ग्रंथ हस्तलक्षण दीपिका पर आधारित है।
कथकली संगीतकथकली वाद्यवृंद दो प्रकार के ढोलों से निर्मित होते हैं - मद्धलम और चेण्डा; चेंगिला जो बेल मेटल का घंटा (घड़ियाल) होता है और इलत्तालम या करताल (मजीरा)।
कथकली का प्रशिक्षणकथकली के छात्रों को कठिन प्रशिक्षण की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है जिसमे तेल से शरीर की मालिश और आंखों, होठों, गालों, मुंह और गरदन के विशेष कसरत शामिल हैं। नृत्य और गीतम के साथ-साथ अभिनय या अभिव्यक्ति का प्राथमिक महत्व है।
कथकली की उत्पत्ति कूटियाट्टम, कृष्णनाट्टम और कलरिप्पयट्ट् जैसे अन्य कला-रूपों से हुई मानी जाती है। केरल कलामंडलम को पारंपरिक रूप से कथकली के प्रशिक्षण के अग्रणी केंद्रों में गिना जाता है।