केरल की महान कथाएं प्रायः कला रूपों के जरिए दुहराई जाती हैं। यहां हमारा इतिहास पूरी तरह जीवंत हो उठता है। तेय्यम एक प्रसिद्ध आनुष्ठानिक कला रूप है जिसका जन्म उत्तरी केरल में हुआ और यह हमारे राज्य के महान गाथाओं को जीवंत करता है। इसमें शामिल हैं नृत्य, प्रहसन और संगीत। यह उन प्राचीन कबीलों की मान्यताओं पर प्रकाश डालता है जिन्होंने नायकों और पूर्वजों की आत्माओं के पूजन पर बल दिया। इस समारोही नृत्य के साथ चेण्डा, इलत्तालम, कुरुमकुषल और वीक्कूचेण्डा जैसे वाद्ययंत्रों का कोरस होता है। 400 से अधिक प्रकार के अलग-अलग तेय्यम होते हैं, प्रत्येक की अपनी संगीत, शैली और कोरियोग्राफी है। इनमें सबसे प्रमुख है रक्ता चामुण्डी, करि चामुण्डी, मुच्चिलोट्टू भगवती, वयनाट्टु कुलावेन, गुलिकन और पोट्टन।
प्रत्येक कलाकार शक्तिशाली नायक का किरदार निभाता है। कलाकार भारी मेक-अप लगाते हैं और फूले हुए कॉस्ट्यूम धारण करते हैं। शिरोभूषण और आभूषण भव्य होते हैं और आपको ये भय मिश्रित आश्चर्य से भर देते हैं। दिसंबर से अप्रैल तक कण्णूर और कासरगोड के अनेक मंदिरों में तेय्यम का प्रदर्शन होता है। करिवेल्लूर, नीलेश्वरम, कुरुमात्तूर, चेरुकुन्नू, ऐषोम और कुन्नत्तूरपाड़ि उत्तरी मलबार के ऐसे स्थल हंव जहां तेय्यम का प्रदर्शन हर वर्ष (कलियाट्टम) होता है और इनमें बड़ी संख्या में भीड़ जुटती है।