आयुर्वेद में नियमित आधार पर एक व्यापक प्रकार के रोगों को शामिल किया गया है। यह शरीर के मूल समस्याओं पर बल देता है और शरीर का उपचार एक समग्र ईकाई के रूप में करता है। नीचे हमने कुछ विशिष्ट प्रकार के रोगों के उपचार विधियों की अनुशंसा की है।
‘धारा’ पुराने सिरदर्द, अनिद्रा (इनसोम्निया), मानसिक तनाव, हिस्टीरिया, विभ्रम (हैल्युसिनेशन) और पागलपन का उपचार है।
‘स्नेहपानम’ ऑस्टियो आर्थ्राइटिस, ल्यूकोमिया आदि का उपचार है।
‘सिरोवस्ति या शिरोवस्ति’ नाक, मुंह, गला के सूखने, गंभीर सिरदर्द, चेहरे का लकवा और सिर में जलन की उपचार विधि है।
‘पिषिच्चिल या पिझिचिल’ स्पॉन्डिलाइटिस, रूमेटिक (वात संबंधी) रोगों जैसे आर्थ्राइटिस (गठिया), पैरालिसिस, हेमीप्लेजिया, नर्व की कमजोरी और नर्व संबंधी अन्य रोगों का उपचार है।
‘उद्वर्तनम’ हेमीप्लेजिया, पैरालिसिस, मोटापा और कुछ रूमेटिक (वात संबंधी) रोगों की उपचार विधि है।
‘मर्म चिकित्सा’ चोट या दुर्घटना के कारण मांसपेशी और कंकाल तंत्र संबंधी रोगों का उपचार है।
‘नस्यम’ नाक के रोगों का उपचार है।
‘कर्णपूरणम’ कान के रोगों की उपचार विधि है।
‘तर्पणम’ मोतियाबिंद का उपचार है और इससे नजर मजबूत होती है।
‘नवरकिषि या न्जवरकिझी (Njavarakizhi)’ मांसपेशी, वात रोग, खेल में लगने वाली चोट, जोड़ों का दर्द, शारीरिक दुर्बलता और कुछ खास प्रकार के त्वचा रोगों का उपचार है।
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