स्थल: कोट्टियूर मंदिर
स्थान: कोट्टियूर
जिला: कण्णूर
घने जंगल के बीच और तेज आवाज के साथ बहती नदी के सम्मुख 28 दिन चलने वाला यह उत्सव एक ऐसा अनुभव है जो आपको केवल ईश्वर के देश केरल में मिल सकता है। कण्णूर के पहाड़ियां कोट्टियूर वैशाख महोत्सवम की मेजबानी करते प्रतीत होते हैं, जो दो मंदिरों - अक्करे कोट्टियूर और इक्करे कोट्टियूर में आयोजित होता है। शक्तिशाली बावेली नदी के किनारे चलने वाला यह उत्सव उत्तरी केरल के सबसे लोकप्रिय उत्सवों में शुमार है।
समारोह अक्करे कोट्टियूर मंदिर में होता है जो साल में केवल इस समारोह के दौरान ही खुलता है। अक्करे कोट्टियूर और इक्करे कोट्टियूर, समारोह स्थल होता है अक्करे कोट्टियूर मंदिर जो साल भर में केवल इस त्योहार के दौरान (मलयालम महीना इडवम के चोती नक्षत्र से लेकर मलयालम महीना मिधुनम के चित्तिरा नक्षत्र तक) खुला रहता है। समारोह का समय आम तौर पर मई-जून में पड़ता है।
श्रद्धालु एक स्वयंभू लिंगम (स्वयं-उद्भूत शिवलिंग) की पूजा करते हैं और इस मंदिर की प्रसिद्धि इस बात को लेकर है कि यहां देवता की कोई मूर्ति स्थायी रूप से स्थापित नहीं है। अस्थायी देवता को नदी के पत्थर के चबूतरे पर रखा जाता है जिसे मणित्तरा कहते हैं। अनुष्ठान फूस की झोंपड़ियों में किया जाता है और नेय्याट्टम (घृत अर्पण) से आरंभ होता है। उत्सव का शुभारंभ वायनाड के मुतिरेरीकावु से एक तलवार लाने से होता है। एक अन्य दर्शनीय नजारा होता है रोहिणी आराधन का जहां पुजारी पूजा-अनुष्ठान की प्रक्रिया के रूप में स्वयंभू शिवलिंग का अलिंगन करते हैं। आप इलनीर वैप्प भी जरूर देखना चाहेंगे जिसमें स्वयंभू लिंगम को कच्चा नारियल अर्पित किया जाता है। समारोह का समापन इलनीराट्टम के साथ होता है जिसमें मुख्य पुजारी जमा किए हुए कच्चे नारियल के पानी से देवता का अभिषेक करते हैं। यह एक अनोखा दृश्य होता है जिसमें मानो साक्षात प्रकृति इस अद्भुत अवसर को अपने आशीर्वाद से अभिसिंचित करती है।
कोट्टियूर के मिथक, पौराणिक गाथाओं और अनुष्ठान विधियों के बारे में और अधिक जानकारी पाएं।