स्थल: संपूर्ण केरल में |
नवरात्री या नौ रात का त्योहार कई आयामों वाला त्योह है जिसे संपूर्ण राज्य में बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। सामान्यतः यह त्योहार सितंबर या अक्टूबर के महीने में आता है, जहां 9 दिन शक्ति/देवी के नौ रूपों की उपासना के लिए निर्धारित रहते हैं। नवरात्री के अंतिम तीन दिन – यानी दुर्गाष्टमी, महानवमी तथा विजयादशमी को देवी सरस्वती यानी बुद्धि और ज्ञान की देवी की अराधना की जाती है। श्रद्धालु अपन काम करने के औजारों को पूजा कक्ष तथा मंदिरों में रखते हैं। इस समय छात्र अपनी किताबें तथा अन्य अध्ययन सामग्रियां पूजा कक्ष और मंदिरों में रख कर पूरा करते हैं। इस अनोखी पद्धति को आयुध पूजा (व्यावसायिक औजारों की पूजा) कहा जाता है।
विजयादशमी के दिन, केरलवासियों की अपनी ख़ास परंपरा होती है। भगवान के नाम के प्रतीक शब्द को एक स्वर्णिम रिंग की मदद से बच्चे की जीभ पर लिखा जाता है। इसी दिन बड़ों की मदद से चावल की थाली पर बच्चों से अक्षर लिखवाया जाता है। यह पद्धति बच्चों को अक्षरों ज्ञान की दुनिया में कदम रखने की शुरुआत मानी जाती है और इसे विद्यारम्भम के नाम से जाना जाता है। इन त्योहारों के लिए पूरे राज्य में कई स्थानों पर उत्सव मनाए जाते हैं। इन महोत्सवों के कुछ खास स्थलों में शामिल हैं- कोट्टयम का पनच्चिक्काड सरस्वती मंदिर तथा मलप्पुरम का तुन्चन परम्ब, तिरुवनंतपुरम का आट्टुकाल भगवती मंदिर, तृश्शूर का गुरुवायूर श्री कृष्णा मंदिर तथा एरणाकुलम का चोट्टानिक्करा देवी मंदिर।