अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

केरल की पारंपरिक मार्शल आर्ट कौन सी हैं?

केरल में मार्शल आर्ट की समृद्ध विरासत है, जिसमें कलरिप्पयट्टु सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध है।

माना जाता है कि कलरिप्पयट्टु, जिसे अक्सर ‘सभी मार्शल आर्ट्स की जननी’ कहा जाता है, की उत्पत्ति 3,000 साल पहले केरल में हुई थी। किंवदंतियों के अनुसार इसका निर्माण ऋषि परशुराम ने किया था। पारंपरिक रूप से योद्धाओं द्वारा किया जाने वाला यह खेल सैन्य प्रशिक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।

कलरिप्पयट्टु प्रशिक्षण समग्र है, जिसमें शारीरिक फिटनेस, आत्मरक्षा तकनीक और मानसिक अनुशासन पर जोर दिया जाता है। इसमें कठोर व्यायाम, हथियार प्रशिक्षण और चपलता, ताकत और सहनशक्ति का विकास शामिल है। छात्र तलवार, डंडे, ढाल और माचे का उपयोग करके नंगे हाथों से युद्ध और हथियार-आधारित तकनीकों का अभ्यास करते हैं।

कलरिप्पयट्टु समय के साथ विभिन्न शैलियों में विकसित हुआ है, जिनमें से प्रत्येक विशिष्ट तकनीकों और हथियारों पर केंद्रित है। दो सबसे प्रमुख शैलियाँ उत्तरी शैली (वडक्कन कलरि) और दक्षिणी शैली (तेक्कन कलरि) हैं।

कलरिप्पयट्टु में प्रतिद्वंद्वी की अपनी ताकत का इस्तेमाल उनके खिलाफ करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जिसमें लाभ प्राप्त करने के लिए कुशल आंदोलनों और दबाव बिंदुओं का उपयोग किया जाता है। इसकी तकनीकें अक्सर जानवरों की हरकतों की नकल करती हैं, जिसमें शक्ति के साथ शालीनता का मिश्रण होता है। एक लड़ाई शैली होने के अलावा, यह एक सांस्कृतिक विरासत बन गई है, जिसे अब आत्मरक्षा, फिटनेस और सांस्कृतिक संरक्षण के लिए अभ्यास किया जाता है।