केरल में ऐसी लगातार बारिश नहीं होती कि लोगों के सभी कामकाज रुक जाएँ। कुछ घंटों की बारिश होती है और बीच-बीच में धूप भी दिखाई पड़ती है। ऐसा बहुत कम होता है कि कुछ दिनों तक लगातार बारिश हो लेकिन धूप हमेशा निकलती है। ऐसे सुनहरे अंतराल जीवन के प्राकृतिक प्रवाह में संतुलन स्थापित करते हैं।
केरल में मुख्य रूप से बारिश के दो मौसम होते हैं। दक्षिण-पश्चिम मानसून जो जून के महीने में आता है जिसे इडवापाति कहते हैं क्योंकि यह मलयालम कैलेंडर में इडवम महीनें के बीच आता है।
अक्तूबर के बीच उत्तर-पूर्वी मानसून का आगमन होता है। मलयालम कैलेंडर में इस माह को तुलाम कहते हैं इसीलिए, इसका नाम तुलावर्षम रखा गया जिसका अर्थ 'तुलाम में बारिश' होता है। बारिश के बादल बंगाल की खाड़ी से इकट्ठा होते हैं और पश्चिमी घाटों में पालक्कड इलाके से हुए तेजी से केरल पहुंचते हैं। जीवन के उमड़ते-घुमड़ते, तरंगित संदेशवाहक जो उत्तर-पूर्वी हवाओं के पंखों में बैठकर यात्रा करते हैं, आप देखते रह जाएँगे।
केरल की कलाओं में अत्यधिक समर्पण और प्रशिक्षण की प्रधानता होती है। इन स्थानीय कलाओं को सीखने के लिए शरीर के नस-नस में पूरा नियंत्रण होना ज़रूरी होता है। इस प्रशिक्षण में कलाकारों को आयुर्वेदिक उपचार दिए जाते हैं।
मानसून के समय कलाकार के शरीर में विशेष जड़ी-बूटियाँ और दवाइयाँ लगाई जाती हैं ताकि मांसपेशियों में आवश्यक लोचता हो और अंगों में फुर्ती आए।
जब प्रकृति बारिश शुरु करती है तो यह मनुष्यों के लिए भी नवजीवन का समय होता है। आयुर्वेद के अनुसार, मानसून नवजीवन चिकित्सा के लिए सबसे अच्छा मौसम होता है। इस मौसम में, वातावरण धूल-रहित और ठंडा होता है, शरीर के रोमकूप पूरी तरह खुल जाते हैं जिसके कारण शरीर जड़ी-बूटी से बने तेलों और चिकित्सा के लिए पूरी तरह तैयार रहता है।
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