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शबरिमला मंदिर जमीनी स्तर से 40 फीट की ऊंचाई पर एक पठार पर स्थित है। अय्यप्पा के पवित्र मंदिर में एक स्वर्ण-लेपित गर्भगृह, विशाल मंडपम (पिलर युक्त हॉल), बलिक्कलपुरा (पवित्र प्लैटफॉर्म), कोडिमरम (ध्वजदंड), और परम पूजनीय अठारह पवित्र सीढ़ियां हैं।
शबरिमला मंदिर जिसे सन्निधानम भी कहा जाता है। सन्निधानम स्वर्ग लोक है या ऐसा स्थान है जहां ईश्वर का निवास है। मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है जो जमीन से 40 फीट की ऊंचाई पर है। इसमें मुख्य मंदिर (गर्भगृह) होता है, जिसमें स्वर्ण-परत वाली छत है, जिसके शीर्ष पर चार कलश स्थापित हैं, दो मंडपम (गजेबो जैसी संरचनाएं), बलिपीठम (बलि के पत्थर के पेडस्टल), बलिक्कलपुरा (अनुष्ठान का प्रसाद बनाने के लिए पत्थर की संरचना) और एक स्वर्ण परत चढ़ी ध्वज स्तंभ है।
पतिनेट्टामपडी या शबरिमला की अठारह सीढ़ियों का प्रतीकात्मक महत्व प्राचीन मान्यताओं और किंवदंतियों भरा पड़ा है। तांत्रिक परंपरा के अनुसार, संख्या 18 आठ जीवात्माओं (दैहिक स्वरूप) और 10 परमात्माओं (ब्रह्मांडीय स्वरूप) का निरूपण करती है। एक मान्यता के अनुसार, अठारह का अर्थ पांच कोश, छह अवस्थाएं और सात पृथ्वी तत्त्व हैं, जो भौतिक शरीर का निर्माण करते हैं।
शबरिमला में सबसे महत्वपूर्ण उप-देवता के रूप में मालिकप्पुरत्तम्मा की काफी अहमियत है। जो भक्त पतिनेट्टामपडी (18 सीढ़ियां) पर चढ़ते हैं और श्री धर्म शास्ता को प्रणाम करते हैं, वापस लौटने पर मालिकप्पुरत्तम्मा के सामने सिर नवाना चाहिए। कहा जाता है कि शबरिमला में भगवती (देवी) के रूप में पूजा की जाने वाली, मालिकप्पुरत्तम्मा का नाम महल जैसे श्री कोविल (गर्भगृह) में रहने के कारण पड़ा है।
शबरिमला मंदिर की कथा में मणिमंडपम की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका है। ऐसा माना जाता है कि यह ऐसा पवित्र स्थल है, जहां देवता सन्निधानम के भीतर निवास करते हैं। वन के बीच का स्थान। प्रचलित मान्यता यह है कि भगवान अय्यप्पा ने 'मरवा सेना' को हराने के बाद यहीं विश्राम किया था। यह पवित्र स्थल है, क्योंकि यहीं पर उन्होंने गहन ध्यान समाधि में प्रवेश किया था।
शबरिमला में, वलियाकडुत्ता स्वामी (बड़े कडुत्ता स्वामी) और कोच्चुकडुत्ता स्वामी (छोटे कडुत्ता स्वामी) को समर्पित दो मंदिर हैं। ऐसा कहा जाता है कि ये दोनों भगवान अय्यप्पा की सेना के सेनापति थे। प्राचीन किस्सा इस प्रकार है: वलियाकडुत्ता एक महान योद्धा और पन्तलम साम्राज्य की सेना के सेनापति थे। उनके साथ इंचिप्पारा कलरी (एक पारंपरिक मार्शल आर्ट प्रशिक्षण केंद्र) के एक वीर योद्धा कोच्चुकडुत्ता भी संलग्न थे। वलियाकडुत्ता के नेतृत्व में पन्तलम सेना के लिए एक प्रशिक्षण प्रतियोगिता में शानदार प्रदर्शन करने के बाद कोच्चुकडुत्ता भगवान अय्यप्पा की सेना में शामिल हो गए।
हिंदुओं के लिए, पम्पा नहीं मां गंगा के समान पवित्र है, और प्रायः इसे दक्षिण भागीरथी के रूप में पूजा जाता है। कई प्रसिद्ध पूजा स्थलों से बहती हुई पम्पा अपने दोनों तटों पर समृद्धि और सौभाग्य का प्रसार करती है। पम्पा की आध्यात्मिक कथाएं शबरिमला और स्वामी अय्यप्पा के साथ गहन रूप से जुड़ी हुई हैं। ऐसा कहा जाता है कि पवित्र स्नान त्रिवेणी पर, यानी तीन नदियों पम्पा, कल्लार और अषुता के संगम पर हुआ था।
वावर स्वामी के साथ भगवान अय्यप्पा की मित्रता की ऐतिहासिक कहानी उस धार्मिक सद्भाव का उदाहरण है, जिसका शबरिमला साक्षी है। शबरिमला के पारंपरिक मार्ग पर तीर्थयात्री एरुमेलि की यात्रा करने और वावर मस्जिद में प्रार्थना करने के बाद ही पहाड़ चढ़ना शुरु करते हैं। एक किंवदंती के अनुसार, वावर मुस्लिम थे, जो भगवान अय्यप्पा के एक अनन्य मित्र थे। अय्यप्पा के गीतों में वावर का उल्लेख एक ऐसे योद्धा के रूप में किया गया है, जो अय्यप्पा का गहरा मित्र बनने से पहले कई बार उनसे लड़ा और उनसे पराचित हुआ था।
शबरिमला में, तंत्री (प्रधान पुजारी) मंदिर के अनुष्ठानों के बारे में महत्वपूर्ण निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शबरिमला तंत्री चेंगन्नूर ताष़मण मठम से जुड़े हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान अय्यप्पा के लिए तांत्रिक पूजा करने के लिए पन्तलम शाही परिवार ने आंध्र प्रदेश से ताष़मण ब्राह्मणों को न्योता दिया था। तरणनेल्लूर परिवार के साथ ताष़मण को केरल के सबसे प्रारंभिक तांत्रिक परिवारों में से एक माना जाता है।ताष़मण मठम का मुख्यालय आलप्पुष़ा जिले के चेंगन्नूर के पास मुंडनकावु में स्थित है। ताष़मण परिवार कई मंदिरों की देखभाल करता है, जिनमें चेंगन्नूर महादेव मंदिर और एट्टुमानूर महादेव मंदिर सम्मिलित हैं।