एरुमेलि पथ
एरुमेलि पथ के माध्यम से करिमला पहाड़ी पर चढ़ना और घने जंगल से होकर सन्निधानम तक पहुंचना किसी भी अय्यप्पा भक्त के जीवन का एक अविस्मरणीय अनुभव होगा। जंगल के पेड़ों के बीच से होकर गुजरने वाली दो दिवसीय यात्रा में आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत करने की शक्ति है, क्योंकि लगभग 50 किलोमीटर तक पहाड़ियों पर पत्थरों और कांटों से भरी कच्ची पगडंडियों पर नंगे पैर चलना पड़ता है। 

पेरूर नहर
पेरूर नहर उन महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है, जो श्रद्धालु एरुमेलि से सन्निधानम तक जंगल के रास्ते से जाते समय गुजरते है। इसके आगे पून्कावनम नामक पवित्र उपवन है, जो समतल भूमि पर स्थित है। .

इरुम्बूणिक्करा
यह स्थान पेरूर नहर और सन्निधानम के बीच स्थित है। ऐसा माना जाता है कि भगवान अय्यप्पा और उनकी सेना ने अपने हथियार इसी क्षेत्र में छुपाकर रखे थे। यहां भगवान शिव, मुरुगा और बलराम को समर्पित मंदिर जंगल के अंदर स्थित हैं। इरुम्बूणिक्करा से आगे बढ़ने के लिए भक्तों को वन विभाग की ओर से पास लेना आवश्यक होता है।

अरशुमुडिकोट्टा
इस स्थान पर भगवान अय्यप्पा और मुरुगा के छोटे-छोटे मंदिर हैं।

कालकेट्टि
यह स्थान पेरूर नहर से छह किलोमीटर दूर है। यहां भगवान शिव, देवी पार्वती और भगवान गणपति के मंदिर हैं।

अषुतानदी
अषुतानदी एक समतल मैदान है, जो कालकेट्टि से दो किलोमीटर दूर है। अषुता पम्पा नदी की एक सहायक नदी है। भक्तगण अषुता में डुबकी लगाते हैं, नदी तल से एक कंकड़ (मलयालम भाषा में कल्लु) उठाते हैं, और कल्लिडांकुन्नु (’वह पहाड़ी जहां से कंकड़ फेंके जाते हैं') पर चढ़ते हैं। अषुता से आगे वाकई जानवरों से भरा हुआ एक जंगली इलाका है। इसी कारण, तीर्थयात्रियों को सूर्यास्त के बाद इसे पार करने की अनुमति नहीं है।

कल्लिडांकुन्नु
अषुता से आगे की ओर एक लाल मिट्टी का रास्ता जाता है। दो किलोमीटर की चढ़ाई के बाद भक्तगण एक स्थान पर पहुंचते हैं, जहां वे अषुता से उठाए गए कंकड़ों को फेंक देते हैं।

इंचिप्पाराकोट्टा
यह भी एक चढ़ाई है। यहां एक शास्ता मंदिर स्थित है और देवता को कोट्टयिल शास्ता के नाम से जाना जाता है।

मुक्कुझी
अषुता नदी पार करने वाले भक्तों के लिए मुक्कुझी अगला प्रमुख विश्राम स्थल है। इंचिप्पारा से मुक्कुझी तक का ट्रेक पहाड़ी से नीचे की ओर और जंगल से होकर जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान अय्यप्पा और उनके सेवकों ने यहीं पर विश्राम किया था। अपनी यात्रा के बाद यहां विश्राम करने वाले भक्तगण, यदि आवश्यक हो तो, चिकित्सा सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं। इस स्थान पर दो मंदिर हैं, एक शास्ता का मंदिर है और दूसरा भगवती का मंदिर है।

करिमला
मुक्कुझी से आगे का रास्ता पुतुशेरीतोडु और करियिलाम नहर के किनारे से नीचे की ओर है। तीन किलोमीटर की पैदल यात्रा करिमला की तलहटी में जाकर समाप्त होती है। भक्तगण भगवान गणपति को सूखे पत्ते अर्पित करते हैं। करिमला की चढ़ाई शबरिमला तीर्थयात्रा का सबसे कठिन हिस्सा है। चढ़ाई बहुत खड़ी है और इसे केवल सात चरणों में ही पार किया जा सकता है। 

वलियानवट्टम, चेरियानवट्टम
करिमला से नीचे उतरते हुए आप वलियानवट्टम पहुंचते हैं जो पम्पा नदी के निकट है। यहां अच्छी सुविधाएं हैं। भक्तगण यात्रा जारी रखने से पहले आराम कर सकते हैं। इसके बाद भक्तगण पम्पा नदी के किनारे-किनारे चलते हुए अपने अगले गंतव्य चेरियानवट्टम तक पहुंचते हैं। आगे नीलिमला की पहाड़ी है।

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