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आइए हम जानें कि पहाड़ी पर स्थित इस छोटे से मंदिर को प्रसिद्धि कैसे मिली
पौराणिक शबरिमला मंदिर के इतिहास में मिथक और किंवदंतियां छुपी हुई हैं। अय्यप्पा की कहानी मंदिर और इसकी उत्पत्तियों से संबंधित है। शास्ता के अवतार के रूप में जन्म लेने वाले अय्यप्पा भगवान शिव और भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार के पुत्र हैं। राक्षसी महिषी के आतंक को समाप्त करना ही अय्यप्पा के जन्म का उद्देश्य था।अपने जन्म का उद्देश्य पूरा होने के बाद, अय्यप्पा अपने लालन-पालन करने वाले पिता राजा राजशेखर के पास आए, और उन्हें अपने देवलोक प्रस्थान करने की सूचना दी। उन्होंने राजा की एक इच्छा पूरी की, अर्थात भगवान स्वयं पृथ्वी पर एक उपयुक्त स्थान ढूंढें जहां उनके सम्मान में एक मंदिर की स्थापना की जा सके। तभी अय्यप्पा ने एक बाण चलाया जो शबरी पर्वत पर गिरा। इस प्रकार, राजा राजशेखर के संरक्षण में, शबरिमला की पहाड़ी पर श्री धर्म शास्ता मंदिर का निर्माण किया गया।20 वीं शताब्दी के मध्य तक, शबरिमला एक लोकप्रिय तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्ध नहीं था। सन 1950 में आग की घटना के बाद मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया। मौजूदा पंचलोहा की मूर्ति उसी समय स्थापित की गई थी। 20 वीं शताब्दी के अंत में यह मंदिर एक प्रमुख तीर्थस्थल के रूप में लोकप्रिय हुआ और हर साल लाखों श्रद्धालु यहां आने लगे। सन 1985 में 18 पवित्र सीढ़ियों पर भी पंचलोहा का आवरण डाला गया।आज, “तत्वमसि” (तुम्हीं ब्रह्म हो) की अवधारणा ही मुख्य दर्शन है जो मंदिर और तीर्थयात्रा के मूल में है। यह मंदिर दुनिया भर में सबसे अधिक यात्रा किए जाने वाले पूजा स्थलों में से एक बन गया है।चीरप्पनचिरा कलरीप्रसिद्ध चीरप्पनचिरा तरवाड (पैतृक घर) आलप्पुष़ा जिले के मुहम्मा में अवस्थित है। यह अय्यप्पा मिथक से बेहद उल्लेखनीय तरीके से जुड़ा हुआ है। चीरप्पनचिरा तरवाड द्वारा संचालित कलरी [प्रशिक्षण मैदान] में ही भगवान अय्यप्पा ने मार्शल आर्ट में महारथ हासिल करने के लिए प्रशिक्षण प्राप्त किया था। कुछ श्रद्धालुओं का मानना है कि चीरप्पनचिरा परिवार की पून्कोडी नामक एक बालिका भगवान अय्यप्पा से बहुत प्रेम करती थी और वही बाद में मालिकप्पुरत्तम्मा बन गई। सदियों पुरानी कलरी और तलवार (ऐसा माना जाता है कि भगवान अय्यप्पा इसका उपयोग करते थे) को अभी भी तरवाड में संरक्षित रखा गया है।पन्तलम पैलेसपन्तलम के राजा ने अपनी भूमि को केरल की पौराणिक कथाओं और इतिहास में अमर कर दिया। उनके और उनके दत्तक पुत्र मणिकण्ठन के बीच का पिता-पुत्र का संबंध शबरिमला का अभिन्न अंग है। आज भी शबरिमला मंदिर में ऐसे अनुष्ठान होते हैं जो इस बंधन को प्रमाणित करने के साथ-साथ उसे मजबूत भी करते हैं। ऐसी मान्यता है कि मदुरै के पांड्या राजवंश की चेम्बझन्नूर शाखा ने 377 ई. में पन्तलम राज्य की स्थापना करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 996 ई. में पन्तलम को त्रावणकोर (तिरुवितांकूर) राज्य में शामिल कर लिया गया था।