भगवान अय्यप्पा, जिन्हें धर्म शास्ता और मणिकण्ठन के नाम से भी जाना जाता है, उनके पीछे की रोचक पौराणिक कथाओं को जानें, जिनका ईश्वरीय जन्म और वीरतापूर्ण कार्य शबरिमला मंदिर की किंवदंती का मुख्य केंद्र हैं। केरल के पश्चिमी घाट में स्थित यह पवित्र मंदिर करोड़ों भक्तों के दिलों में विशेष स्थान रखता है। भगवान अय्यप्पा की रोचक कहानी, उनके अद्वितीय जन्म से लेकर उनके ईश्वरीय उद्देश्य और भारत के सबसे प्रतिष्ठित तीर्थ स्थलों में से एक की स्थापना होने तक की यात्रा।


भगवान अय्यप्पा का ईश्वरीय जन्म

ऐसा माना जाता है कि अय्यप्पा का जन्म भगवान शिव और विष्णु (मोहिनी अवतार में, जो एक आकर्षक प्रलोभिका थी) के पुत्र के रूप में हुआ था। महिषासुर की बहन और राक्षसी महिषी तब प्रतिशोधी हो गई जब उसके भाई को देवी दुर्गा ने मार डाला। उसने कठोर तपस्या की और अंत में भगवान ब्रह्मा उसके समक्ष प्रकट हुए और उसे वरदान दिया कि केवल भगवान विष्णु और भगवान शिव की संतान ही उसे मार सकती है। वरदान को प्राप्त करते हुए, महिषी हिंसक हो गई, जिससे भयंकर विनाश हुआ। उसकी क्रूरता से चिंतित होकर, देवताओं ने भगवान विष्णु से इसे रोकने की मांग की। इसके बाद, उच्चस्तर पर यह निर्णय लिया गया कि भगवान विष्णु मोहिनी अवतार लेंगे और भगवान शिव से एक बच्चे को जन्म देंगे। इस प्रकार अय्यप्पा का जन्म भगवान शिव और भगवान विष्णु के पुत्र के रूप में हुआ और उन्होंने भगवान शिव के अनन्य भक्त पन्तलम के राजा राजशेखर के संरक्षण में रहने का फैसला किया।

राजा राजशेखर द्वारा भगवान अय्यप्पा की खोज

शिशु को जंगल में छोड़ दिया गया और राजा राजशेखर को शिकार करते जाते समय शिशु अय्यप्पा मिले। निःसंतान राजा ने शिशु का पालन-पोषण करने का फैसला किया और उसे  अपने साथ पन्तलम महल ले गए। बच्चे के गले (कंठ) में एक मणि (घंटी) पाए जाने के कारण उसका नाम 'मणिकण्ठन' रखा गया। उस समय सेमणिकण्ठन भगवान विष्णु और भगवान शिव की दिव्यता के साथ एक राजकुमार के रूप में बड़े हुए। इसके तुरंत बाद, राजा राजशेखर और उनकी रानी को एक बच्चा हुआ। यह विश्वास करते हुए कि यह मणिकण्ठन द्वारा अपने साथ लाए गए सौभाग्य के कारण ही बच्चा पैदा हुआ, राजा ने मणिकण्ठन को अपना उत्तराधिकारी बनाने का फैसला किया।

रानी की झूठी बीमारी

हालाँकि, यह बात राजा के एक मंत्री को अच्छी नहीं लगी, जिसने गुप्त रूप से अगला राजा बनने की महत्वाकांक्षा पाल रखी थी। उन्होंने रानी को इस बात से आश्वस्त किया कि केवल उनका रक्त संबंधी बच्चा ही वैध उत्तराधिकारी हो सकता है। उनकी सलाह मानकर रानी ने बीमारी का बहाना करने का निर्णय लिया। मंत्री की बातों में आकर रानी के चिकित्सक ने रानी की बीमारी के उपचार के लिए बाघिन का दूध लाने की सलाह दी। षड्यंत्रकारियों ने सोचा कि मणिकण्ठन को जंगल में जाने के लिए मजबूर करके जंगली जानवरों का शिकार बनाया जा सकता है। हालांकि, राजा ने अपने सैनिकों को बाघिन का दूध के लिए जंगल में भेज दिया। लेकिन वे दूध लाने में सफल नहीं हुए।

महिषी की पराजय

बालक मणिकण्ठन ने स्वेच्छा से जंगल में जाने की बात कही और काफी समझाने के बाद राजा ने इस बात की आज्ञा दे दी। इस प्रकार मणिकण्ठन घने जंगलों की यात्रा पर निकल पड़े। जैसे ही उन्होंने जंगल में प्रवेश किया, भगवान शिव के भूतों ने उन पर कड़ी नजर रखनी शुरू कर दी। रास्ते में उन्हें देवलोक में महिषी द्वारा की गई कई क्रूर घटनाएं देखने को मिलीं। ईश्वरीय योजना पूरी तरह से चल रही थी। मणिकण्ठन ने देवलोक में महिषी का सामना किया और उसे वापस पृथ्वी पर फेंक दिया। इसके बाद एक भयंकर युद्ध हुआ, जिसके अंत में मणिकण्ठन महिषी की छाती पर चढ़ गए और उन्होंने ऐसा भयंकर नृत्य करना शुरू किया, जिससे पूरी पृथ्वी और देवलोक हिल गया। तब महिषी को एहसास हुआ कि यह कोई साधारण बालक नहीं बल्कि भगवान शिव और भगवान विष्णु का पुत्र है। इसके तुरंत बाद महिषी की मृत्यु हो गई।

भगवान अय्यप्पा की बाघिन के साथ वापसी

जब मणिकण्ठन ने जंगल में फिर से प्रवेश किया तो भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें सूचित किया कि उनका ईश्वरीय कार्य पूरा हो गया है। उन्होंने अय्यप्पा को बाघिन का दूध लेने में भगवान इंद्र की सहायता का भी आश्वासन दिया। इंद्र ने स्वयं एक बाघ का रूप धारण किया और देवियां बाघिन के रूप में उनके पीछे चल पड़ीं। बाघ के ऊपर सवार होकर और बाघिनों के साथ मणिकण्ठन पन्तलम महल की ओर चल पड़े। जब राजा मणिकण्ठन को बाघ पर सवार होकर आते देख कर आश्चर्यचकित हुए, तो एक संत उनके सामने प्रकट हुए और उन्होंने राजा को उसके पालक पुत्र की असली पहचान बताई।

भगवान अय्यप्पा के शबरिमला मंदिर की स्थापना

अय्यप्पा वापस आए और राजा को बताया कि उनके जन्म का उद्देश्य पूरा हो गया है और वे देवलोक लौट रहे हैं। इससे पहले, वह राजा की इच्छा पूरी करते, राजा ने अनुरोध किया कि भगवान स्वयं पृथ्वी पर एक उपयुक्त स्थान ढूंढें जहां उनके सम्मान में एक मंदिर की स्थापना की जा सके। तभी अय्यप्पा ने एक बाण चलाया जो शबरी पर्वत पर गिरा। भगवान ने निर्णय लिया कि शबरिमला ही वह स्थान होगा जहां उनका मंदिर हमेशा चमकता रहेगा। फिर वह देवलोक के लिए प्रस्थान कर गए। इस प्रकार, शबरिमला में श्री धर्म शास्ता मंदिर का निर्माण राजा राजशेखर के संरक्षण में किया गया था।

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