नायाट्टु विली शबरिमला में मकरविलक्कु महोत्सव के हिस्से के रूप में आयोजित एक दुर्लभ व महत्वपूर्ण समारोह है। इस अनुष्ठान में अय्यप्पा की कथा का पद्य रूप में पाठ किया जाता है। मणिमंडपम में  कलमेषुत्तु अनुष्ठान तथा अत्ताषा पूजा के बाद एषुन्नल्लत्तु (शोभायात्रा) मालिकप्पुरम से आरंभ की जाती है। इसके बाद लगातार चार दिनों तक भगवान अय्यप्पा नायाट्टु विली के साथ पतिनेट्टामपडी (18 सीढ़ियां) पर चढ़ते हैं।

जैसे ही शोभायात्रा पतिनेट्टामपडी (18 सीढ़ियां) तक पहुंचती है, प्रतिभागी मंदिर के सामने खड़े होकर नायाट्टु विली का पाठ करते हैं, जो पोजिशन की घोषणा करता रहता है। नायाट्टु विली उस समय का स्मरण कराता है, जब भगवान अय्यप्पा शिकार करने गए थे और उनके भक्त जयघोष करते हुए उनके आगे-आगे चल रहे थे। इस अनुष्ठान में अभिवादन से लेकर अर्पण तक 576 क्रियाएं पूरी की जाती हैं, जो भगवान अय्यप्पा के इतिहास का वर्णन करती हैं। पाठ के दौरान, प्रतिभागी "ओहोय" की अनुष्ठानिक उच्चारण के साथ उत्तर देते हैं और कथा के हर चरण में "स्वामी" का जाप करते हैं।

नायाट्टु विली समूह में पल्लिवेट्टा कुरुप्पु समेत 12 सदस्य होते हैं। नायाट्टु विली दक्षिण की ओर निर्देशित होता है, जबकि भगवान अय्यप्पा की शोभायात्रा पश्चिम की ओर चलती है। यह अनुष्ठान आधे घंटे तक चलता है, जिसमें पन्तलम पैलेस के प्रतिनिधि और देवस्वम अधिकारी दर्शक के रूप में उपस्थित रहते हैं।

पांचवें दिन, शोभायात्रा नायाट्टु विली के साथ शरमकुत्ती की ओर बढ़ती है। पेरुनाड पुन्नमूड  के पेरुमाल पिल्लई परिवार के पास परंपरा से नायाट्टु विली आयोजित करने का अधिकार है, माना जाता है कि यह विशेषाधिकार उन्हें पन्तलम के राजा द्वारा दिया गया था। ऐसा माना जाता है कि इस परिवार को राजा द्वारा पांडी क्षेत्र से लाया गया था। शबरिमला समारोह के बाद, पेरुनाड कक्काड़ कोइक्कल मंदिर में भी नायाट्टु विली प्रदर्शन किया जाता है।

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