हिंदुओं के लिए, पम्पा नहीं मां गंगा के समान पवित्र है, और प्रायः इसे दक्षिण भागीरथी के रूप में पूजा जाता है। कई प्रसिद्ध पूजा स्थलों से बहती हुई पम्पा अपने दोनों तटों पर समृद्धि और सौभाग्य का प्रसार करती है। पम्पा की आध्यात्मिक कथाएं शबरिमला और स्वामी अय्यप्पा के साथ गहन रूप से जुड़ी हुई हैं।

ऐसा कहा जाता है कि पवित्र स्नान त्रिवेणी पर, यानी तीन नदियों पम्पा, कल्लार और अषुता के संगम पर हुआ था। पम्पा के तट पर ही पन्तलम के राजा की दृष्टि सबसे पहले उस शिशु पर पड़ी, जो बड़ा होकर भगवान अय्यप्पा बना। यह कथा भी प्रचलित है कि भगवान अय्यप्पा ने मरवा सेना के साथ युद्ध में मारे गए योद्धाओं के लिए यहां तर्पणम, या मृतक आत्माओं के लिए अनुष्ठान पूरा किया था।

पम्पा केरल की तीसरी सबसे बड़ी नदी है, जो शबरिमला में पुलच्ची मला (पर्वत) से निकलती है और वेम्बनाड बैकवाटर में जाकर गिरती है। इसके तट पर प्रसिद्ध आरन्मुला मंदिर समेत कई पूजा स्थल हैं। इस नदी के तट पर पाषाण युग के पुरातात्विक अवशेष पाए गए हैं, जो उनके ऐतिहासिक महत्व और पम्पा नदी के तटों से जुड़ी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का संकेत करती है।

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