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पतिनेट्टामपडी या शबरिमला की अठारह सीढ़ियों का प्रतीकात्मक महत्व प्राचीन मान्यताओं और किंवदंतियों से भरा पड़ा है। तांत्रिक परंपरा के अनुसार, संख्या 18 आठ जीवात्माओं (दैहिक स्वरूप) और 10 परमात्माओं (ब्रह्मांडीय स्वरूप) का निरूपण करती है। एक मान्यता के अनुसार, अठारह का अर्थ पांच कोश, छह अवस्थाएं और सात पृथ्वी तत्त्व हैं, जो भौतिक शरीर का निर्माण करते हैं। एक अन्य मान्यता के अनुसार, यह अठारह लोकों, अठारह पुराणों, भगवान अय्यप्पा द्वारा अपने शत्रुओं को पराजित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले अठारह अस्त्र-शस्त्रों आदि को दिखाता है। सृजन की इस दुनिया के पार जाने का भी प्रतीक है। इसके कई संस्करण हैं। यह जानना भी रोचक है कि संख्या 18 भारत के बाहर भी कई धर्मों के लिए एक पवित्र संख्या मानी जाती है!लोकप्रिय कथाओं के अनुसार, भगवान अय्यप्पा ने अपने दैहिक पिता, पन्तलम के राजा से उनके लिए 18 सीढ़ियों वाला एक मंदिर बनाने का अनुरोध किया था। इसलिए, प्रतीकात्मक रूप से, भक्त पांच इंद्रियों (पंचेंद्रिय - आंख, कान, नाक, जीभ और त्वचा जो दृष्टि, ध्वनि, गंध, स्वाद और स्पर्श को नियंत्रित करते हैं), आठ भावनाओं (अष्टराग - काम [प्रेम], क्रोध [रोष], लोभ [लालच], मोह [वासना], असूया [ईर्ष्या], दंभ [अहंकार], मद [अभिमान] और माल्सर्य [प्रतिस्पर्धी भावना]), तीन गुण (त्रिगुण - सत्व [पवित्रता], तमस [जड़ता] और रजस [भाव]), ज्ञान (विद्या) और अज्ञान (अविद्या) पर काबू करते हैं (और उनके प्रभाव पर काबू पा लेता है)।केवल वे श्रद्धालु जो इन नियमों का पालन करते हैं और इरुमुडी (सिर पर रखा दो भाग वाला पोटली) ले जाते हैं, वे ही पवित्र पतिनेट्टामपडी को छूने या पैर रखने की पात्रता रखते हैं।