नेय्यभिषेकम

भगवान अय्यप्पा को समर्पित किए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण और शुभ अनुष्ठानों में से एक है नेय्यभिषेकम’, जिसमें घी से मूर्ति का अभिषेक किया जाता है। यह अनुष्ठान प्रातः 04:00 बजे शुरू होता है और दोपहर 01:00 बजे उच्चा पूजा (मध्याह्न पूजा) तक चलता है।

नेय्यभिषेकमके बाद पुजारी घी का एक भाग दिव्य प्रसाद के रूप में वापस कर देते हैं। जो श्रद्धालु घी से भरा नारियल नहीं ला पाते हैं, वे देवस्वम बोर्ड द्वारा उपलब्ध कराए गए अभिषेक घी का उपयोग कर सकते हैं। यह घी मनुष्य आत्मा की तरह माना जाता है, और ऐसा माना जाता है कि यह भगवान अय्यप्पा या परमात्मा में विलीन हो जाता है। बिना घी वाले नारियल को निर्जीव शरीर माना जाता है, और यही कारण है कि इसे मंदिर के सामने स्थित बड़ी अग्निकुंड में डाल दिया जाता है, जिसे आझी कहा जाता है|

पडी पूजा

शबरिमला की अनोखी विशेषताओं में से एक है पतिनेट्टामपडीया 18 पवित्र सीढ़ियां, जिनमें से प्रत्येक का अपना महत्व है। यह अनुष्ठान खास दिनों पर शाम के समय होता है और मुख्य पुजारी मेलशांति की उपस्थिति में तंत्री या प्रधान पुजारी द्वारा किया जाता है। सीढ़ियों को फूलों, रेशमी कपड़ों और पारंपरिक दीपों से सजाया जाता है, जिससे श्रद्धा से परिपूर्ण माहौल निर्मित होता है। एक घंटे तक चलने वाले समारोह के बाद, तंत्री आरतीकरते हुए अनुष्ठान का समापन करते हैं, जो शबरिमला के सबसे पवित्र और पूजनीय अनुष्ठानों में से एक है।

उदयास्तमना पूजा

उदयास्तमना पूजा सुबह से शाम तक (निर्माल्यम से अत्ताषा पूजा (रात्रिकालीन पूजा) तक) की जाती है। उदयास्तमका शाब्दिक अर्थ है सूर्योदय से सूर्यास्त तक (’उदयका अर्थ है सूर्य का उदय होना और स्तमयका अर्थ है सूर्य का अस्त होना)। इस पूजा के लिए बहुत अधिक व्यवस्था की आवश्यकता होती है, और इसलिए यह पूजा केवल कुछ खास दिनों पर ही की जाती है।

सहस्रकलशम

तांत्रिक वेद और आगम शास्त्रों के मुताबिक, सहस्रकलशम हरिहरपुत्र (श्री धर्म शास्ता) को चढ़ाया जाने वाला एक प्रसाद है, जिसका उद्देश्य है सभी लोगों के कल्याण के लिए आशीर्वाद प्राप्त करना। पवित्र कलशम (पवित्र घड़ा) को सोने, चांदी, तांबे और अन्य कीमती और अर्ध कीमती रत्नों, धूप, सात समुद्रों और पवित्र नदियों के जल से भरकर सभी पवित्र आत्माओं का आह्वान करने का एक पूजनीय प्रयास है।

उल्सवबली

उल्सवबली की परंपराएं पाणि के थाप के साथ शुरू होती हैं। पाणि को भूतगणम को आकर्षित करने के लिए तैयार किया जाता है, ये भूतगणम अधिष्ठातृ देवता के सहयोगी होते हैं, और उल्सवबली उन्हें समर्पित किया जाता है। इसके बाद, नालम्बलम और बलिक्कलपुरा के चारों ओर के भूतगणम के बलिकल्लु को पके हुए कच्चे चावल (उल्सवबली तूवल) की एक परत से ढक दिया जाता है। सप्तमातृक्कल (सात माता देवियां) पर पके हुए चावल को छिड़कने के बाद, श्रद्धालुओं की प्रार्थना के लिए अधिष्ठातृ देवता के तिडम्बु को गर्भगृह से बाहर ले जाया जाता है। उल्सवबली भगवान अय्यप्पा के मंदिर में वार्षिकोत्सव का एक हिस्सा है।

पुष्पाभिषेकम

पुष्पाभिषेकम अनुष्ठान में शबरिमला में भगवान अय्यप्पा पर फूलों की वर्षा की जाती है। पुष्पाभिषेक अनुष्ठान के समय, भगवान अय्यप्पा की मूर्ति पर चमेली, तुलसी, गुलदाउदी (क्रिसैन्थमम), कमल और बिल्व (बेल) सहित कई तरह के फूलों और पत्तों की बरसात की जाती है। शबरिमला में पुष्पाभिषेकम में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं को भागीदारी शुल्क का भुगतान करके पहले से बुकिंग करानी पड़ती है।

अष्टाभिषेकम

अष्टाभिषेकम में भगवान अय्यप्पा को आठ वस्तुएं चढ़ाई जाती है। शबरिमला में अष्टाभिषेकम के लिए उपयोग की जाने वाली वस्तुएं हैं घी, विभूति, दूध, शहद, पंचामृतम, नारियल पानी, चंदन और गुलाब जल।

कलभाभिषेकम

कलभाभिषेकम एक बहुत ही विशेष पूजा है जो आमतौर पर देवता के चैतन्य (आभा) को मजबूत करने के लिए की जाती है। कलभाभिषेकम के भाग के रूप में, तंत्री मेलशांति की उपस्थिति में नालम्बलम में कलभाकलशा पूजा करते हैं।

अनुष्ठान का समापन कलभाकलशाभिषेक के साथ होता है, जहां भगवान अय्यप्पा की मूर्ति पर चंदन का लेप लगाया जाता है, जो श्री कोविल के चारों ओर कलभाभिषेकम के लिए चंदन का लेप लगा हुआ स्वर्ण कलश को ले जाने वाली शोभायात्रा के अन्त में तंत्री द्वारा उच्चा पूजा (मध्याह्न पूजा) के दौरान किया जाता है।

लक्षार्चना

'अर्चना’ का अर्थ है ईश्वरीय नाम का जाप करना और आदर प्रकट करना। लाख’ का अर्थ 1,00,000 है। इस प्रकार, ‘लक्षार्चना’ में मंत्र के रूप में भगवान के नाम को सामूहिक रूप से दोहराया जाता है। इसके बादतंत्रीमुख्य पुजारी और अन्य पुजारियों के साथसन्निधानम में लक्षार्चना का आयोजन करते है। लक्षार्चना में इस्तेमाल होने वाले ब्रह्मकलशम” को उच्चा पूजा (मध्याह्न पूजासे पहले अभिषेक” के लिए एक शोभायात्रा के रूप में गर्भगृह तक लाया जाता है।

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